बांदा (डीवीएनए)। बांदा के जिलाधिकारी आनन्द सिंह नें प्रशासनिक पिच पर फिर छक्का जड़ दिया। इससे फील्डिंग करनें वाले अधिकारियों और कर्मचारियों नें कड़ाके की शीत लहरी में पसीना छोड़ दिया है। वह क्यो? इसके कारणों को जान लीजिए कि विकास खण्ड स्तरीयअधिकारियों कर्मचारियों में हड़कंप का आलम क्यों है।
दरअसल दो दिन पूर्व हमने इस खबर को चलाया था, जिले में मनरेगा के तहत खोदे गए तालाब ज्यादातर उपयोगी नहीं है, कारण कि उनको बनाते समय न तो स्थान, न ही उनके कैचमेंट और न ही निकासी का ध्यान रखा गया है। इन कारणों से ये तालाब बहुत उपयोगी नहीं रह गए हैं। ज्यादातर सूखे पड़े हुए हैं। खबर में हमने कई गावों के तालाबों के नामों का उल्लेख भी किया था। जानकारी दी थी कि तालाबों को बनाने में न तो लोक ज्ञान का इस्तेमाल किया गया है, न ही परंपरागत ज्ञान का इस्तेमाल हुआ, न ही आधुनिक विज्ञान का। इनको बनाने में दबंगई, पैसा और लूट-खसोट का इस्तेमाल ज्यादा दिखता है। ये तालाब लोगों के संकट को बढ़ा ही रहे हैं। अब भला जिलाधिकारी आनन्द सिंह अपनी कार्यशैली के तहत कहां चूकने वाले थे।
विश्वसनीय सूत्र बताते है कि डीएम आनन्द सिंह नें इस संदर्भ में मुख्य विकास अधिकारी को जिले के तालाबों की जांच करनें और कितने तालाब जल विहीन सूखे पड़े है उसकी रिपोर्ट सीडीओ के माध्यम से तलब की गई। फिर क्या पूरे महकमे में हड़कंप मचा हुआ है। जिलाधिकारी की कार्यवाई के भय से विकास खण्ड अधिकारियों नें ग्राम पंचायत अधिकारियों को निर्देश दिये है कि सूखे पड़े तालाबों को किसी तरह ट्यूब बेलो तथा अन्य साधनो से पानी भरों क्योकिं डीएम साहब कभी भी जिले में तालाबों के निर्माण और उनमें पानी की उपलब्धता का निरीक्षण कर सकतें हैं। नरैनी तहसील क्षेत्र के तालाब उनकी निरीक्षण की पार्थिमिकता में हैं। अब तालाबों को जल में डुबकी लगाने लायक दर्शा कर जिलाधिकारी को कैसे गुमराह किया जाये, इस रणनीति कि संरचना की जा रही हैं। इसीलिये हमने डीएम आनन्द कुमार सिंह को भी सावधान एवं सतर्क कर दिया है।
विनोद मिश्रा
Digital Varta News Agency