बांदा (डीवीएनए)। केंद्र सरकार की मनरेगा योजनाकी हालत ज्यों-ज्यों दवा की मर्ज बढ़ता ही गया की कहावत चरितार्थ कर रही है। घपला दर घपला, अमर बेल की तरह बढ़ता जा रहा है। इस घोटाले को घोटाले बाजों ने अपने बचाव के लिये सजाये फाइल कर उसमे कैद कर रख दिया है। तमाम कोशिशों के बाद भी भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लग पा रही। पिछले चार सालों में डेढ़ करोड़ की वित्तीय अनियमितता ग्राम पंचायतों में हुए सोशल आडिट में उजागर हुईं।
आपको बता दूं की शासन के संज्ञान में आ जाने के बाद भी कार्रवाई नहीं हो रही। इस मामले में अधिकारी भारी पड़ रहे हैं। मनरेगा में प्रतिवर्ष 50 करोड़ रुपये का श्रम बजट आता है। जिसे निर्माण कार्यों और मजदूरी में खर्च होता है। कार्यों की गुणवत्ता को परखने के लिए शासन द्वारा सोशल आडिट कराया जाता है। वर्ष 2016-17 में कमासिन, बबेरू, तिंदवारी के 75 ग्रामों का आडिट कराया गया था।
इसमें 50 लाख रुपये की अनियमितताएं पाई गईं। वर्ष 2016-17 और वर्ष 2017-18 में शासन ने ब्लाक बिसंडा के छह ग्राम पंचायतों का सोशल आडिट कराया। 50 से अधिक कार्यों में 25 लाख रुपये से अधिक की वित्तीय अनियमितता मिली। वर्ष 2018-19 में शासन ने ब्लाक बिंसडा, नरैनी, महुआ के 202 ग्राम पंचायतों का आडिट कराया। इसमें 1429 कार्यों में 75 लाख रुपये की वित्तीय अनियमितता सामने आई।
वर्ष 2019-2020 में कोरोना संक्रमण के चलते सोशल आडिट नहीं हो सका, लेकिन पिछले तीन सालों में सोशल आडिट के दौरान मिलीं अनियमितताओं पर अधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की। पिछले वर्ष प्रदेश के अपर आयुक्त मनरेगाध्ग्राम विकास योगेश कुमार ने डीएम और उपायुक्त मनरेगा को भेजे गए पत्र में कड़ी नाराजगी जाहिर करते हुए दोषियों से विरुद्ध रिकवरी व कार्रवाई के आदेश दिए थे।
इस संबंध में सीडीओ हरिश्चंद्र वर्मा का कहना है कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है। पत्रावलियों का अवलोकन कर दोषियों के विरुद्ध रिकवरी और अन्य कार्रवाई की जाएगी। उपायुक्त (मनरेगा) का कहना है कि उन्होंने हाल ही में चार्ज लिया है। इस बारे में पता करेंगे।
संवाद विनोद मिश्रा
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