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बुन्देलखंड से गिध्द विलुप्त, केंद्र सरकार चिंतित, विशेषज्ञ टीम ने टैगिंग के लिये डाला डेरा

बांदा (डीवीएनए)। गिद्धों का गढ़ कहे जाने वाले बुंदेलखंड में भी यह पक्षी तेजी से विलुप्त हुआ है। यहां के कुछ जिलों में वन विभाग की पिछली गणना में एक भी गिद्ध नजर नहीं आया। केंद्र सरकार ने इसे संज्ञान लेते हुए देश में पहली बार इनकी रेडियो टैगिंग की जा रही है। बुंदेलखंड के पन्ना टाइगर रिजर्व पार्क में टैगिंग के लिए भारतीय वन्य जीव संस्थान, देहरादून से आए विशेषज्ञों की टीम ने डेरा डाला है। अभी सिर्फ बांदा सीमा सें लगीं घाटी मे एक लाल सिर वाला दुर्लभ गिध्द मिला। टीम नें टैग लगाया और उसने उड़ान भरी।
बुंदेलखंड में गिद्धों की सात प्रजातियां पाईं जाती हैं। इनमें चार स्थाई हैं, जबकि तीन सीजन में आते हैं। वन विभाग हर तीन वर्ष में पशु पक्षियों की गणना कराता है। पिछली गणना वर्ष 2018 में हुई थी। इसमें बांदा, हमीरपुर, महोबा और जालौन में एक भी गिद्ध गणना कर्मियों को नहीं मिले। सबसे ज्यादा 45 गिद्ध चित्रकूट जिले में पाए गए थे। इसके बाद ललितपुर में 30 वयस्क गिद्ध और 11 बच्चे मिले। झांसी में गिद्धों की संख्या 15 पाई गई थी। विशेषज्ञों की राय में पर्यावरण प्रदूषण और गिद्धों के प्राकृतिक वास स्थलों का सफाया या अन्य गतिविधियां बताई जा रही हैं। बुंदेलखंड में गिद्धों का गढ़ बचाने को केंद्र सरकार ने अब पन्ना रिजर्व टाइगर पार्क में गिद्धों की रेडियो टैगिंग शुरू कराई है।
यह रिजर्व पार्क गिद्धों के लिए मशहूर है। लंबी उम्र और आसमान में हजारों मीटर ऊंचाई पर उड़ान भरते हुए धरती पर पड़े शिकारध्मरे जानवर को देख और सूंघ लेने की अद्भुत क्षमता रखने वाले गिद्ध लगभग पूरे देश में कम हुए हैं। बुंदेलखंड में तो कई स्थानों पर इनका सफाया हो गया है। वर्ष 2018 में हुई पशुध्जीव गणना से यह बात सामने आ चुकी है।
बुंदेलखंड के पन्ना टाइगर रिजर्व में गिद्धों की रेडियो टैगिंग के लिए भारत सरकार की अनुमति के बाद काम शुरू हो गया है। टाइगर रिजर्व क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा ने बताया कि रेडियो टैगिंग से गिद्धों के रहने वाले स्थलों, प्रवास के मार्गों और लैंडस्केप में उनकी उपस्थिति की जानकारी मिल सकेगी।इसी के आधार पर इनके संरक्षण और प्रबंधन के लिए भविष्य की योजना तय हो सकेगी। गिद्धों को पकड़कर रेडियो टैग लगाने के लिए टाइगर रिजर्व में खुले घास के मैदान में बड़ा सा पिजड़ा बनाया गया है। बताया कि रेडियो टैगिंग का काम एक माह में पूरा कर लिया जाएगा।
फिलहाल 25 गिद्धों की रेडियो टैगिंग होगी। इस क्षेत्र में गिद्धों की सात प्रजातियां हैं। इसमें चार स्थानीय निवासी है और शेष प्रवासी प्रजातियां हैं। उन्होंने बताया कि देश में पहला मौका है जब देश में अध्ययन के लिए उनकी रेडियो टैगिंग की जा रही है।
पिछली गणना में बुंदेलखंड में नहीं मिले गिद्ध
बुंदेलखंड में गिद्धों का तेजी से सफाया हो रहा है। वन विभाग द्वारा की जाने वाली नियमित गणना के आंकड़े इसके गवाह हैं। हालांकि कुछ सालों से इनके संरक्षण को की जा रही कोशिशें रंग ला रही हैं। हर तीसरे वर्ष होने वाली पशु गणना इसके पूर्व वर्ष 2018 में हुई थी। तब चित्रकूटधाम मंडल को छोड़कर अन्य जिलों में गणना कर्मियों को कहीं गिद्ध नजर नहीं आए थे।
ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन बना दुश्मन
गिद्धों की तेजी से मौत के पीछे यह बात भी सामने आई थी कि पिछले कई सालों से पशुपालक दूध बढ़ाने के लिए अपनी गाय-भैंसों को ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन देते हैं। इसका दुष्प्रभाव पशुओं की देह पर पड़ता है। इन पशुओं के मरने पर इनका मांस खाकर गिद्ध अकाल मौत के शिकार हो जाते हैं। हालांकि सरकार ने ऑक्सोटोसिन इंजेक्शन पर पाबंदी लगा दी थी। गिद्धों के बारे में बताया गया है कि साल में एक बार ही अंडा देते हैं। बच्चा पांच साल न होने पर मादा अंडे नहीं देती।
भारत में गिद्ध की 9 प्रजातियां, 7 बुंदेलखंड में
जानकार बताते हैं कि विश्व में गिद्ध की 22 प्रजातियां हैं। इनमें 9 भारत में पाई जाती हैं। इनमें सात प्रजातियां बुंदेलखंड में मिलती हैं। इन सात प्रजातियों में बिल्ड गिद्ध, व्हाइट बैक्ड गिद्ध, रेड हेडिड गिद्ध और इजिप्शियन आदि शामिल हैं। इनके अलावा तीन प्रजातियां हिमालियन ग्रिफॉन, यूरेशियन ग्रिफॉन और सिनेरियस गिद्ध सर्दी में यहां प्रवास में आते हैं। उधर, हर साल सितंबर के प्रथम शनिवार को अंतर्राष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस मनाया जाता है।
संवाद विनोद मिश्रा

Digital Varta News Agency

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